एक लेखक के रूप में, क्या आप स्वयं को कुछ समय के लिए लिखता हुआ, रुकता हुआ तथा आपने जिसे लिखा है उसे पढ़ता हुआ पाते हैं, उसे कूड़ा मानने का निर्णय लेते हैं और तब फिर से लिखना शुरू करते हैं? क्या यह चक्र बार-बार दोहराया जाता है और आप अंत में बिल्कुल निराश और बेकार अनुभव करते हैं, तथा कोई भी कहानी पूरी नहीं कर पाते हैं? यदि ऐसा है, तब आप अपने घोर आलोचक बन गए हैं तथा अपने-आप पर अत्यंत अहेतुक कठोर हो रहे हैं। इन आलोचनाओँ को अपने संपादकों तथा पाठकों के लिए छोड़ दीजिए।
जब आप लिख रहे होते हैं तब आपका कार्य होता है अपनी सृजनशालता को प्रवाहित बनाए रखना। अपने लेखन पर निर्णय निलंबित रखना सीखने के लिए आगे पढिए:
दृढ़ता के साथ “नहीं!” कह डालिए।
आप जिसे लिख रहे हैं उस पर तथा आपकी क्षमता पर अतिरिक्त मात्रा में राय आपके अंदर चल रही बातचीत से आती है जो कहती है कि आपका लेखन अपर्याप्त है। अपने आंतरिक स्वगत संवाद का निरीक्षण कीजिए और उसे अपने मन में यह कहते हुए सुनेंगे कि आपको फिर से आरंभ करना चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में अपने स्वगत संभाषण को काबू में ले लीजिए, तथा इस प्रकार की भाषा को एक बड़ा सा “नहीं!” बोल दीजिए। इस पर विश्वास करने से मना कर दीजिए। और इतने जोर से “नहीं ” कहिए जैसे कोई बड़ा सिंह या सिहिनी गरज रहे हैं।
इसे गरज कर “हाँ!” कहिए
आत्म-संदेह का उलटा हैं प्रसन्नता तथा अभिव्यक्ति-स्वतंतत्रता। अपने-आप पर निर्णय को “नहीं !” कहने के बाद स्वयं को उन्मुक्त हो कर लिखने तथा अपनी सृजनशीलता को उमड़ निकलने के लिए की अनुमति देने के लिए उच्च स्वर में इस प्रकार का “हाँ!” कहिए। मुँह पर एक बड़ी मुस्कान के साथ इसे जोर से कहिए। अपने अंदर इस “हाँ!” का स्वागत कीजिए तथा लिखना जारी रखिए। निरीक्षण कीजिए कि अब आप लिखते हुए कैसा अनुभव करते हैं। आप बदल कर बेहतर हो गए हैं।
दुनिया में पर्याप्त रायेँ हैं
स्मरण रखिए, इस दुनिया में पहले से ही बहुत रायेँ हैं। इतने लोगो के दिन के प्रत्येक पल, परस्पर आलोचनात्मक बनते रहने के बाद, क्या आपको वास्तव में अपने लेखनों के प्रति अधिक आलोचनात्मक रवैया लेते हुए इसे और भी बढ़ाने की आवश्यकता है? मैं अनुमान कर रहा हूँ कि इसका उत्तर नकारात्मक है।
अपने ऊपर राय बनाने से कोई फायदा नहीं
अपने आप पर कठोर बनते हुए तथा किसी कल्पना के अनुसार उसे आदर्श बना कर नहीं लिखने पर, क्या आपका भला होता है? वास्तव में बिल्कुल नहीं होता। आप अंत में और भी चिंताग्रस्त हो जाते हैं। अब, यदि राय बनाते हुए तथा चिंता करते हुए बिताई गई वह घड़ियाँ आपको अच्छा लिखने में सहायता कर रहीं होती, तब तो वास्तव में इतना आलोचनात्मक बनने में कोई तुक था। तथापि, ऐसा कदाचित ही होता है। इतना समय व्यर्थ की राय बनाने में नष्ट नहीं करते हुए, इसका उपयोग कल्पना को अपने ऊपर हावी करने में कीजिए और केवल लिखिए। और जिसे आपने अभी-अभी लिखा है उसे पढ़िए। यदि इसका कोई अर्थ नहीं निकलता, तब इससे भी बेहतर लिखिए!
यह आपकी अनोखी आवाज है
आप जिसे लिखते हैं वह आपकी कल्पना, सृजनशीलता, अनुभवों तथा रुचियों की अभिव्यक्ति है। यह सब मिल कर आपके लेखन को वह बनाती हैं जो आपके अनोखे व्यक्तित्व से निकला हुआ है। अपने लिखने पर राय बनाने का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि ऐसा करते हुए आप वास्तव में अपने बाहर निकलने के पथ को एक रोड़े से अटका देते हैं, और अपनी अभिव्यक्ति करने के लिए इच्छुक होना एक सामान्य प्रवृत्ति है। स्मरण रखिए, यह दुनिया आपकी बोली सुनना चाहती है, और यह विश्वसनीय रूप से तभी निकलती है यदि आप इसे ऐसा करने की अनुमति देते हैं।
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[author] [author_image timthumb=’on’]https://writingtipsoasis.com/wp-content/uploads/2014/01/hv1.jpg[/author_image] [author_info]Hiten Vyas is the Founder and Managing Editor of eBooks India. He is also a prolific eBook writer with over 25 titles to his name.[/author_info] [/author]