उन लेखकों के लिए, जो प्रकाशित होना चाहते हैं, किसी प्रकाशन-गृह पर अपनी कृति डालते हुए परंपरागत पथ से जाने की कोई भी आवश्यकता नहीं है। इसके बदले वे स्वयं-प्रकाशन कर सकते हैं। तथापि, यह निर्णय लेना, या किस पथ से जाएँ इसका चयन करना कोई आसान कार्य नहीं है। प्रकाशित होना चाहने वाले किसी लेखक को कोई भी निर्णय लेने से पहले दोनों उपायों के हानि-लाभों को जान लेना चाहिए।
1. परंपरागत प्रकाशन समय लेता है
परंपरागत प्रकाशन के साथ प्रश्न पूछने वाला पत्र, सारांश तथा साधारणतः पुस्तक के कुछ आरंभिक अध्याय लेखक को स्वयं या साहित्यिक अभिकारक के माध्यम से प्रकाशन-गृह के पास पहुँचाना लिप्त रहता है – और तब लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। लेखक को प्रकाशन-गृह से उत्तर पाने के लिए छः महीने तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है, विशेषतः यदि यह कोई बड़ा प्रकाशन-गृह है, क्योंकि उन्हें लेखकों और अभिकारकों से अनेक प्रश्न मिलते हैं। इसके अतिरिक्त जिस पहले प्रकाशन-गृह को आपने स्थिर किया है वह आपकी पुस्तक लेने के लिए तैयार नहीं भी हो सकता है, इसलिए आपको कइयों को पुस्तक के लिए स्थिर करना पड़ता है, और उनमें से किसी एक के द्वारा पुस्तक को चुने जाने के लिए आशाप्रद हो कर प्रतीक्षा करनी पड़ती है। परंतु प्रतीक्षा यहीं समाप्त नहीं होती – अपनी संपूर्ण की गई पुस्तक की एक छपाई प्रति हाथों में पाने के लिए आपको संभवतः एक और वर्ष, या कम से कम छः महीने प्रतीक्षा करना पड़ सकता है।
2. स्वयं-प्रकाशन एक आर्थिक जोखिम है
यदि आप केवल ई-बुक प्रकाशन का निर्णय नहीं लेते हैं, तब स्वयं प्रकाशन के साथ, भौतिक छपी हुई प्रति पाने में कम समय लगेगा। इस सन्निकर्ष का अर्थ है कि आपको पुस्तक की पांडुलिपि का प्रूफशोधन से ले कर संपादन, आवरण डिजाइन की बुकिंग, विपणन एवं वितरण तक, इन सभी का निधिकरण करना पड़ेगा। कई लेखक इन सब को स्वयं करने के लिए प्रयास करते हैं – परंतु उन्हें यदि इन क्षेत्रों का अल्प-ज्ञान है, तब उनकी पुस्तकें अनाड़ी दिखती हुई लग सकती हैं और पाठक उन्हें नहीं खरीदेंगे, और इसका अर्थ है कि आर्थिक निवेश लाभदायक नहीं होगा। दूसरी ओर…
3. परांपरागत प्रकाशन सभी का नियंत्रण करता है
जब आप अपनी पांडुलिपि को किसी प्रकाशक के पास विक्रय करते हैं, तब आपको प्रत्येक विक्रीत प्रति से रॉयल्टी का भुगतान किया जाता है। अच्छी बात यह है कि आपकी पुस्तक दुकान में जाने से पहले आपको इन रॉयल्टीज़ का अग्रिम भुगतान किया जाता है। परंतु इसका अर्थ है कि अब, आपका प्रकाशक अंतिम उत्पाद पर नियंत्रण रखता है, और जहाँ इसका अर्थ है कि आपको वृत्तिधारी संपादक मिलते हैं, जो आपकी पांडुलिपि का प्रूफशोधन, (आशा की जाती है कि) संपादन और परिमार्जन के सर्वोत्तम संस्करण में करेंगे, संपादक कई चीजों को बदलने का निर्णय ले सकता है जो कहानी को पूर्णतः परिवर्तित कर सकती है। और यह भी, कि कई लेखक आवरणों से हताश हो जाते हैं, विशेषतः यदि यह पुस्तक की विषय-वस्तु के संबंध में भिन्न संवाद दे रहे हैं।
4. विपणन तथा प्रचार-प्रसार
पुस्तक का प्रचार-प्रसार तथा विपणन प्रकाशन प्रक्रिया के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंश हैं। यद्यपि आप अमेजन तथा अन्य मंचों के द्वारा प्रकाशन कर रहे हैं, यदि आप पुस्तक का विपणन नहीं करते, तब यह नहीं बिकेगी; चाहे वह कितनी भी अच्छी क्यों न हो, क्योंकि पाठक यह भी नहीं जान पाएँगें कि आप की पुस्तक अस्तित्व में है! दूसरी ओर, यदि आप परंपरागत पथ से जाएँ, तब प्रकाशन-गृह पुस्तक के विपणन तथा प्रचार-प्रसार की देख-भाल करेगा, और वे सुनिश्चित करेंगे कि आपकी पुस्तक उन बाज़ारों के परे वितरित की जाए जिनमें आप पहुँच सकते थे, और इससे उच्चतर लाभ होगा। .
5. विश्वसनीयता
स्वयं-प्रकाशित पुस्तकों को एक कलंक अब भी अनुसरण करता है, यद्यपि हाल के वर्षों में यह बदलना आरंभ हो गया है। वह पुस्तकें जो अमेजन के द्वारा पहले प्रकाशित की जाती थीं वह प्रकाशन-गृहों के द्वारा लक्ष्य की जाती थीं और लेखक पर्याप्त धन के लिए प्रकाशन अधिकार का विक्रय कर देते थे। परंतु यह तथ्य कि कोई पुस्तक स्वयं-प्रकाशित की गई है पाठकों को भड़का सकता है, क्योंकि यदि कोई पुस्तक किसी बड़े प्रकाशन-गृह के द्वारा प्रकाशित की गई है वह एक निश्चयता के भाव का अनुभव करते हैं कि इसका अर्थ है कि इसे दक्षतापूर्वक किया गया होगा और अतः, यह स्वयं-प्रकाशित पुस्तक से अच्छी है। यह वास्तव में गलत है, क्योंकि किसी पुस्तक की सफलता केवल विधा या अब मुख्यधारा क्या है, इन पर निर्भर नहीं करती, बल्कि इस पर भी करती है कि वह विधा अब कितनी संतृप्त है। परतु, यह राय बनी रह गई है कि कोई भी किसी पुस्तक को स्वयं-प्रकाशित कर सकता है, चाहे उनमें प्रतिभा और अनुभव हो या नहीं हो, और इसके द्वारा स्वयं-प्रकाशन के सम्मान एवं विश्वसनीयता की हानि होती है।
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[author] [author_image timthumb=’on’]https://writingtipsoasis.com/wp-content/uploads/2014/12/photo.jpg[/author_image] [author_info]Georgina Roy wants to live in a world filled with magic.
As a 22-year-old art student, she’s moonlighting as a writer and is content to fill notebooks and sketchbooks with magical creatures and amazing new worlds. When she is not at school, or scribbling away in a notebook, you can usually find her curled up, reading a good urban fantasy novel, or writing on her laptop, trying to create her own.
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